पुत्र प्राप्ति सुख समृद्धि के लिए छठ पूजा

न्यूज एक नजर/गाजीपुर : सूर्योपासना के महापर्व डाला छठ के अवसर पर लोगों मे अस्था और श्रद्धा का माहौल बना हुआ है। छठ पर्व पर बड़ी संख्या मे श्रद्धालुओं ने गंगा घाटो पर पहुँच पारम्परिक तरीके से भगवान सूर्य और छठ माता की पूजा-अर्चना की। इस दौरान व्रती महिलाओं ने डूबते सूर्य को अर्घ्य देकर प्रार्थना की, कल सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य देकर और पूजा पाठ कर छठ पर्व का समापन किया जायेगा। इस दौरान लोगों मे आस्था और श्रद्धा का माहौल नजर आया।

डाला छठ पर्व पर डूबते सूर्य को अर्घ्य देने के लिए गंगा किनारे बने घाटों पर श्रद्धालुओं का उमड़ा जन सैलाब। तीन दिवसी इस व्रत को बहुत ही कठिन व्रत माना जाता है ऐसी मान्यता है कि जिन महिलाओं के पुत्र ना होते हो अगर वह इस व्रत का पालन करती हैं तो उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है।

महापर्व छठ पूजा जो कभी बिहार तक ही सीमित थी। आज पूरे देश में इसे बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। विभिन्न घाटों पर आज डूबते सूर्य को अर्घ्य देने के लिए श्रद्धालुओं का भारी जन सैलाब उम्र पड़ा। छठ पर्व का आरंभ नहाय खाय के साथ होता है। इस दिन व्रती महिलाएं भोर में उठकर स्नान आदि कर नए वस्त्र धारण कर पहल सूर्य देव को जल अर्पित करती हैं। इसके बाद सात्विक आहार ग्रहण कर अपने व्रत को शुरू करती हैं।

व्रत का पहला दिन नहाय खाय

नहाय खाय के दिन कद्दू की सब्जी, लौकी चने की दाल और भात यानी चावल खाया जाता है। नहाया खाय का भोजन बिना लहसुन और प्याज के सात्विक तरीके से तैयार किया जाता है। व्रती के खाने के बाद ही परिवार के अन्य लोग नहाय खाय का खाना खा सकते हैं ।

व्रत के दूसरे दिन खरना

व्रत के दूसरे दिन खरना होता है, जिसमें गुड़ की खीर और रोटी बनाई जाती है। इस दिन गुड़ की खीर में केवल चावल और गुड़ होता है किसी प्रकार का कोई मेवा या दूध का प्रयोग नहीं किया जाता। इसी रात से महिलाएं भोजन करने के बाद अपना व्रत शुरु करती हैं और लगभग 36 घंटे तक यह व्रत चलता है।

तीसरे दिन ढलते सूर्य को अर्घ्य

तीसरे दिन डूबते सूर्य को अर्घ्य देने के लिए घर के पुरुष सर पर डाला रखकर बैंड बाजे के साथ नदी किनारे पहुंचते हैं, और महिलाएं जहां जल के जल में खड़ी होती हैं तो वहीं पुरुष अर्घ्य देते हैं।

चौथे दिन उगते सूर्य को अर्घ्य

इस दिन राती महिलाएं और पुरुष उगते सूर्य को अर्घ्य देकर इस व्रत का समापन करते हैं। पूजा के दौरान महिलाएं व पुरुष सूर्य देव को प्रकृति से प्राप्त वनस्पति अर्पित कर उनकी उपासना करते हैं।

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